खराब हवा से गर्भ में जा रही शिशु की जान:बांझपन, गर्भपात, प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा; एयर प्यूरीफायर तक नाकाम
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में खराब हवा के चलते गर्भ में ही शिशु की जान जा रही है। मिसकैरेज के मामले बढ़ सकते हैं, वक्त से पहले यानी प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है।
वायु प्रदूषण कैसे महिलाओं की सेहत का दुश्मन है, इस पर बात करने से पहले जानते हैं कि किन महिलाओं को एयर पॉल्यूशन से सबसे ज्यादा खतरा है :
बाहर से ज्यादा घर में प्रदूषण, होममेकर बचकर रहें
‘यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पैसिफिक’ की एयर पॉल्यूशन एक्सपर्ट दिशा शर्मा कहती हैं कि एयर पॉल्यूशन पर हुई कई रिसर्च में इस बात के सबूत मिले हैं कि खराब हवा में सांस लेने से फेफड़े, हार्ट, नर्वस सिस्टम और किडनी पर बुरा असर पड़ता है, लेकिन किसी शहर या गांव के कुछ खास हिस्सों में महिलाओं की सेहत पर प्रदूषण का असर देखने के लिए भारत में अब तक कोई खास अध्ययन नहीं किया गया।
दिशा बताती हैं कि हमारे देश में घर के अंदर, बाहर से ज्यादा प्रदूषण है और घर के अंदर ज्यादातर होममेकर ही रहती हैं। इनकी संख्या हमारे देश में ज्यादा है। इन घरों में हवा की सही आवाजाही न होने से सेहत बिगड़ती है। बिना वेंटिलेशन के रसोई में हो रही कुकिंग और रोज बंद कमरों में धूपबत्ती और अगरबत्ती का सुबह शाम जलना, घर के अंदर हो रहे प्रदूषण की बड़ी वजह है।
दिशा शर्मा कहती हैं कि ध्यान रहे कि मैं किसी की भावनाओं को चोट पहुंचाने की बात नहीं कर रही, लेकिन अगर घर के बाहर धूल की परत है, कुछ नजर नहीं आ रहा और हवा भी नहीं चल रही तो घर में धूपबत्ती, अगरबत्ती और हवन करना ठीक नहीं। अगर धूपबत्ती, अगरबत्ती जलानी है तो कमरे की जगह बाहर गमले में जला दें और हवन बालकनी में करें।
घर में एयर पॉल्यूशन की वजह घरों और किचन में एग्जॉस्ट फैन न होना भी है। ध्यान रखें, रूम फ्रेशनर भी वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं। इनसे भले ही कमरा महक उठे, लेकिन इसके कण शरीर के अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं।
पहले नहीं होता था महिलाओं को लंग्स कैंसर और कार्डियक अरेस्ट
डॉ. निखिल मोदी कहते हैं कि उत्तरी भारत में वायु प्रदूषण अक्सर 1 दिन में 20-30 सिगरेट पीने जितना होता है। जैसे स्मोकर्स के शरीर में सिगरेट पीने के बाद बदलाव आते हैं, ठीक वैसे ही वायु प्रदूषण के बीच रह रहे इंसान के शरीर में हानिकारक बदलाव देखे जा सकते हैं।
इसके हल्के लक्षण आंखों में जलन, नाक से पानी बहना, शरीर में दर्द, कफ और खांसी हैं। एक जमाना था, जब महिलाओं में लंग्स कैंसर के मामले कम दिखते थे, लेकिन अब वह भी इसकी शिकार बन रही हैं।
पॉल्यूशन के नुकसानदेह कण नाक के जरिए फेफड़ों में पहुंचते हैं, जिसके बाद वे खून में मिल जाते हैं। यह डस्ट पार्टिकल्स हार्ट, शरीर के ब्लड सर्कुलेशन पर असर डालते हैं। इससे ब्लड सर्कुलेशन डगमगाता है और दिल की बीमारियों की शुरुआत होती है।
इसलिए अब महिलाएं भी हार्ट प्रॉब्लम झेलने लगी हैं और उनमें हार्ट अटैक के मामले बढ़े हैं। यही वजह है कि एयर पॉल्यूशन ब्लड सर्कुलेशन पर बुरा असर डालता है और इसलिए महिलाएं अब पहले से ज्यादा थका महसूस करने लगी हैं।
झुग्गी-झोपड़ी की महिलाओं की जल्दी बिगड़ती है सेहत
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. निखिल मोदी कहते हैं कि स्लम एरिया में रह रहीं महिलाएं वायु प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है एक कमरे में कई लोगों का साथ रहना और वेंटिलेशन के लिए एक भी खिड़की का न होना।
छोटे कमरे में इनडोर एयर पॉल्यूशन बाहर के प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक होता है। इसलिए ऐसी महिलाओं की सेहत सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से खराब रहती है।
मां बनने वाली महिलाओं को घर के रेनोवेशन या पेंट से रहना चाहिए दूर
डॉ. अनुराधा कपूर के अनुसार प्रदूषण के कण महिलाओं के शरीर में हॉर्मोन्स के नॉर्मल फ्लाे को डिस्टर्ब करते हैं जिससे उनमें हॉर्मोनल इमबैलेंस (असंतुलन) हो जाता है। अगर प्रदूषण के कण प्लेसेंटा यानी गर्भ नाल में चले जाएं तो भ्रूण को प्रभावित करते हैं।
बेबी तक होने वाली ब्लड सप्लाई को रोक सकते हैं जिससे उसका विकास रुक सकता है। खून में हानिकारक केमिकल मिले होंगे तो बच्चों को किसी भी तरह का डिफेक्ट हो सकता है।
डॉ. अनुराधा कपूर ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि प्रदूषण की वजह से अभी तक उन्होंने प्रेग्नेंसी में आई दिक्कत का कोई मामला नहीं देखा, लेकिन एक केस पर उन्हें संदेह है। उस पेशेंट के घर में रेनोवेशन हो रहा था। कुछ दिन बाद उनका मिसकैरेज हो गया। हालांकि यह प्रदूषण से हुआ, यह बिना जांच के कहना ठीक नहीं होगा।
कई स्टीज इस बात का दावा कर चुकी हैं कि अगर घर में रेनोवेशन या पेंट हो तो प्रेग्नेंट महिलाओं को इससे बचना चाहिए। डॉक्टर खुद सलाह देते हैं कि प्रेग्नेंसी में घर में इस तरह की कोई चीज न करवाएं।
मिसकैरेज, प्रीमैच्योर डिलीवरी या स्टिल बर्थ का खतरा
मैक्स मल्टी स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली में गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. अनुराधा कपूर कहती हैं कि अगर हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड या नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का लेवल ज्यादा है तो प्रेग्नेंसी पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
मिसकैरेज के मामले बढ़ सकते हैं, वक्त से पहले यानी प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है या ‘स्टिल बर्थ’ यानी बच्चे की हार्ट बीट गायब हो सकती है। मेडिकल भाषा में इसे ईडीसी यानी एंडोक्राइन डिस्फैक्टर्स कहा जाता है।
पॉल्यूशन से इनफर्टिलिटी का कनेक्शन
प्रदूषण से एग की क्वालिटी भी खराब होती है। जो महिला आईवीएफ की प्रक्रिया से गुजर रही है, उनका लाइव बर्थ रेट कम देखने को मिलता है यानी उनकी प्रेग्नेंसी के चांस कम होते हैं।
चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी की स्टडी में पाया गया कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का असर स्मोकिंग की तरह ही होता है। प्रदूषण के कण प्लेसेंटा में जमे पाए गए। चीन में इनफर्टिलिटी पर एक रिसर्च हुई। इसमें प्रदूषित इलाकों में रहने वाले 18 हजार कपल्स पर शोध हुआ। शोध में पाया गया कि पॉल्यूशन के पार्टिकल्स ने एग और स्पर्म को खराब किया।
वहीं, अमेरिका के एक इनफर्टिलिटी क्लिनिक ने भी एक शोध किया जिसमें पाया गया कि प्रदूषण ओवरी में मैच्योर एग नहीं बनने देता जिससे महिलाओं का मां बनने का सपना पूरा नहीं हो पाता। सबसे बड़ी बात है कि कपल्स को भी यह नहीं पता होता कि इनफर्टिलिटी की वजह पॉल्यूशन है। मेडिकल टेस्ट में भी इसका कारण पकड़ में नहीं आता।
अलग से नहीं होता प्रदूषण जांचने के लिए कोई टेस्ट
डॉ. अनुराधा कपूर कहती हैं कि हर प्रेग्नेंट महिला से उनकी फैमिली हिस्ट्री के साथ-साथ वह कहां रहती है, यह पूछा जाता है। अगर शक होता है कि महिला किसी प्रदूषित इलाके में रहती है तो उनका ब्लड टेस्ट करवाया जाता है जिससे बॉडी में लेड के लेवल का पता चलता है।
अगर कोई महिला फैक्ट्री में काम कर रही है, घर में सफाई का या कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है, तो डॉक्टर उन्हें काम न करवाने की सलाह देते हैं। इसे ऑक्यूपेशनल हैजर्ड की कैटेगरी में रखा जाता है। जो महिलाएं प्रेग्नेंसी में प्रदूषण के संपर्क में आई हों तो उन्हें हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज होने के चांस भी रहते हैं।
जल्द आ सकती है मेनोपॉज की स्टेज
प्रदूषण में पाए जाने वाले पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5–10) यानी कण 2.5 से 10 mm के बीच के हों तो वह महिलाओं के पीरियड्स को प्रभावित करते हैं। जब हर महीने पीरियड्स नहीं होते तो महिलाएं पीसीओएस या पीसीओडी का शिकार हो जाती हैं। प्रदूषण से जल्दी मेनोपॉज की समस्या भी हो सकती है।
दरअसल प्रदूषण से हॉर्मोन्स का लेवल असंतुलित हो जाता है। इससे ओवरी सामान्य स्तर पर एस्ट्रोजन नाम का हार्मोन रिलीज नहीं कर पाती। कई बार समय से पहले ओवरी काम करना बंद कर देती हैं जिसे प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर कहा जाता है।
अर्ली एजिंग की भी हो रहीं शिकार
एयर पॉल्यूशन सबसे ज्यादा ट्रैफिक से होता है। इससे पार्टिकुलेट मैटर (PM) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड हवा में घुल जाती है जो भले ही आपको आंखों से नजर न आएं लेकिन यह त्वचा को वक्त से पहले खराब कर देती है। इससे प्रीमेच्योर एजिंग शुरू हो जाती है।
प्रदूषण के कण स्किन में फ्री रेडिकल्स को बढ़ावा देते हैं जिससे पिग्मेंटेशन बढ़ता है और त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती हैं। प्रदूषण का असर बेअसर करने के लिए चेहरे पर स्किन प्रोटेक्टिंग एंटी पॉल्यूशन सीरम अप्लाई करें।
पॉल्यूशन से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में 29% महिलाएं खो देती हैं बच्चा
लैंसेट प्लैनेटरी ने 2000-2016 के बीच भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पॉल्यूशन के प्रेग्नेंसी पर असर को लेकर स्टडी की। इसमें सामने आया कि प्रदूषण की वजह 29% प्रेग्नेंसी लॉस हुईं।
इस स्टडी में कहा गया कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित दक्षिण एशिया के देश हैं। इसी वजह से विश्व में सबसे ज्यादा महिलाएं इन्हीं देशों में बच्चे के सुख से महरूम रहती हैं। PM 2.5 की एयर क्वॉलिटी प्रेग्नेंसी लॉस का मुख्य कारण है।
भारत में 7% मिसकैरेज PM 2.5 की वजह से होते हैं। भारत में सालाना PM 2.5 का लेवल 40 mg/m3 है। जितना हवा में PM 2.5 का स्तर बढ़ेगा, हर 10 mg/m3 पर 3% प्रेग्नेंसी लॉस होता है।
इस स्टडी में 34,197 महिलाओं को शामिल किया गया। इनमें 27,480 महिलाओं ने मिसकैरेज और 6,717 स्टिल बर्थ झेले। 77% प्रेग्नेंसी लॉस भारत में, 12% पाकिस्तान में और 11% बांग्लादेश में सामने आए।
भारत में PM 2.5 से बचने के लिए भले ही एयर प्यूरीफायर और मास्क का इस्तेमाल हो रहा हो, लेकिन यह चीजें, ओजोन गैस, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का असर नहीं रोक सकतीं।
बरतें ये सावधानियां
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- पर्याप्त मात्रा में साफ पानी पीती रहें। पानी में मौजूद ऑक्सीजन आपकी इम्यूनिटी बेहतर रखेगा।
- सुबह और शाम के समय बाहर जाने से परहेज करें।
- इस समय पर घर के खिड़की और दरवाजे भी बंद रखें। सुबह और शाम के समय आप ताजी हवा घर में आने देने के लिए खिड़की-दरवाजे खोलती हैं। जबकि इसी समय बाहर सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है।
- प्रदूषण रोधी पौधों जैसे तुलसी, स्नेक कैक्टस, अलायॅ वेरा आदि को अपने लॉन, बालकनी या आंगन में जगह दें। इनकी संख्या इतनी तो होनी ही चाहिए कि एक हरियाली की एक पूरी लेयर तैयार हो सके।
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- अगर आप गर्भवती हैं और गर्भावस्था अंतिम छह सप्ताह में है, तो ऐसी जगह रहें जहां मेटरनिटी होम आसपास ही हो। क्योंकि कई बार प्रदूषण के चलते प्री मेच्योर डिलीवरी का जोखिम बढ़ जाता है।
- अगर संभव हो तो भीड़भाड़ वाले इलाकों में रहने से परहेज करें।
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