Chand Grahan 2023: क्या चंद्र ग्रहण में खा सकते हैं खाना? जानें बचे भोजन का क्या करना चाहिए
ज्योतिष के हिसाब से चंद्र ग्रहण चंद्र ग्रहण दिनांक 29 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 06 मिनट से शुरू होगा और देर रात 02 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगा। कुल मिलाकर 1 घंटे और 16 मिनट का चंद्र ग्रहण लगेगा। वहीं उपच्छाया से पहला चंद्र स्पर्श रात 11:32 पर है। इसका सूतक शाम 04:06 मिनट से शुरू हो जाएगा।
वहीं इस साल शरद पूर्णिमा भी उसी दिन है। जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। शरद पूर्णिमा में खीर बनाना बेहद खास माना जाता है। इस दिन ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा में कालकृति से परिपूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की बारिश करते हैं। इसलिए इस दिन रात्रि में छत पर खीर रखने की भी परंपरा है।
अब ऐसे में सवाल यह है कि चंद्रग्रहण के दौरान खाना खाया जा सकता है और अगर आपने पहले ही भोजन कर लिया है, तो उस बचे भोजन का क्या करना चाहिए।
आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
ग्रहण के दौरान यह लोग कर सकते हैं भोजन
कोई भी ग्रहण हो, सूर्य या चंद्र ग्रहण। दोनों में खाने की मनाही होती है। क्योंकि उस दौरान नाकारात्मक शक्तियों और कीटाणु का प्रभाव अधिक रहता है। इसलिए इस समय व्यक्ति भोजन करने से बीमार हो सकता है, लेकिन इस दौरान भोजन में तुलसीदल डालकर बच्चे, बीमार व्यक्ति, वृद्ध भोजन कर सकते हैं।
ग्रहण के बाद बचे भोजन का क्या करें?
अगर आपने ग्रहण से पहले भोजन बनाकर खा लिया है और खाना बच गया है, तो उसमें तुलसीदल डालकर आप उसे रख सकते हैं। वह खाना शुद्ध रहेगा और आपको उसे फेंकना भी नहीं पड़ेगा। चंद्रग्रहण से पहले यानी कि सूतक काल लगने कुछ समय पहले पीने का पानी और खाने में तुलसी दल अवश्य डालें और उसे अच्छे से ढककर रख दें। इससे खाना खराब नहीं होगा और शुद्ध भी रहेगा। आप उस खाने को बाद में भी खा सकते हैं।
ग्रहण के दौरान जरूर करें इन मंत्रों का जाप
ग्रहण के दौरान इन मंत्रों का जाप जरूर करें। इससे आपको लाभ हो सकता है।
- ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते,
- अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
- विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत
- दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥
- ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय
- जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ओम् स्वाहा।।
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